To Copy Vs Not to Copy


 "असफलता के बाद किया गया पुनः प्रयास और भी अधिक रचनात्मक होता है।"जीवन में सफलता की कसौटी स्वयं के ज्ञान का आकलन करना है, और इसका अनुभव जीवन में परिपक्वता लाता है। अक्सर विद्यार्थी जीवन में सफलता का मतलब परिणाम पत्र (Result Sheet) में प्राप्त अंकों को मान लिया जाता है, जबकि वास्तविकता में उसका जीवन में कोई खास उपयोग नहीं होता।अच्छे अंकों से सफलता को मापने का विद्यार्थी के व्यावहारिक जीवन पर उचित प्रभाव नहीं पड़ता।

माता-पिता के दबाव में विद्यार्थी अच्छे अंक प्राप्त करने का प्रयास करते हैं, जिसके कारण कई बार वे परीक्षा में दूसरों की नकल करना, हाथ पर उत्तर लिखना, या चिट ले जाना आदि गलत कदम उठा लेते हैं। जब ऐसी हरकतें शिक्षक या अन्य विद्यार्थियों के संज्ञान में आती हैं, तो बच्चे को शर्मिंदा होना पड़ता है और ये सभी हरकतें अनजाने में ही हो जाती हैं, क्योंकि यहां भी उसका ध्यान अच्छे अंक प्राप्त करने पर होता है। 

कई बार हमने बच्चों के बारे में सुना है कि वे ध्यान केंद्रित नहीं कर पाते, पढ़ाई में कमजोर होते हैं, जबकि वही बच्चा नकल करते समय इस बात का ध्यान रखता है कि मुझे अच्छे अंक लाने हैं, नहीं तो मैं फेल हो जाऊंगा। इससे यह साबित होता है कि बच्चा अपने लक्ष्य पर केंद्रित है लेकिन रास्ता गलत है और ऐसी सोच वाला बच्चा कमजोर कैसे हो सकता है। एक शिक्षक या अभिभावक के तौर पर सबसे पहले हमें बच्चों को नैतिक मूल्यों से स्पष्ट रूप से परिचित कराना चाहिए जहां बच्चे को यह समझाना होगा कि परीक्षा का मतलब सिर्फ अच्छे अंक प्राप्त करना नहीं है बल्कि अपने ज्ञान का ईमानदारी से विश्लेषण करना भी है क्योंकि यह ज्ञान उसके व्यावहारिक जीवन में साक्षरता को माप सकता है।

Comments

Popular posts from this blog

Why Relationship building matters ? (in the school context) SHALINI TIWARI

Reflection -2 War versus Peace