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  Affection vs Rejection कई बार शिक्षक बहुत जल्दी किसी बच्चे के बारे में धारणा बना लेते हैं कि यह तो ऐसा ही है क्योंकि वे केवल बच्चों की क्रियाएँ और उसके व्यवहार के आधार पर आलोचना करना शुरू कर देते हैं और उसकी अवहेलना करने लगते हैं किंतु एक शिक्षक के रूप में सर्वप्रथम हमें उसके उस व्यवहार के कारण को जानना चाहिए। उसके लिए बच्चे से वार्तालाप करना चाहिए जैसे परिवार के सदस्यों के बारे में और उसके दिनचर्या के बारे में इत्यादि । हमें कभी भी बच्चों से इस तरह के प्रश्न नहीं करने चाहिए कि तुम्हारे परिवार में कौन-कौन है उसके स्थान पर आप यह बात करें कि अपने परिवार के बारे में कुछ बताओ जिससे वार्तालाप को विस्तार मिल सके किन्तु यह तभी सार्थक होता है जब हम बिना कोई धारणा बनाए उसकी बात सुने। जब हम इस तरीके से बच्चों में रोचकता दिखाते हैं तो धीरे-धीरे बच्चा भी अपने विचारों को व्यक्त करने लगता है। फिर, हम उससे उसकी की गई क्रियाओं पर चर्चा कर सकते हैं और उसे सही गलत में फर्क करना सीखा सकते हैं । किसी भी बच्चे को मार्गदर्शन देने के लिए सबसे पहले शिक्षक में सहानुभूति की अपेक्षा समानुभूति की भावना होनी
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                                     Love Learning Vs  Hate Learning       मैंने कक्षा में प्रवेश किया तो बच्चों ने उत्साह के साथ अभिवादन किया और पूछा, मैंम, आज के नए शब्द के लिए कोई संकेत दीजिए। मैं हतप्रभ रह गई कि मेरे इस तरह के प्रयोग करने पर बच्चे इतने   प्रभावित हो जाएँगे। मैंने पुनः नए शब्द के आधार पर एक सामान्य ज्ञान का प्रश्न बनाया जिसके तरह-तरह के उत्तर छात्र अपनी-अपनी सोच के आधार पर बता रहे थे। यह, वह   समय था जब नए सत्र में मैंने कक्षा की शुरुआत की थी और आज इस सत्र का आखिरी दिन था, मैंने अपनी कक्षा की अवधि पूर्ण की और बाहर निकल आई तभी पीछे से दो बच्चों ने आवाज लगाई, मैंने पीछे मुड़कर देखा और पूछा, “क्या बात है ? उनमें से एक रुँआसा होते हुए पूछा -“मैंम, क्या आप अगली कक्षा में नहीं पढ़ाएँगी¿ मैंने मुस्कुरा कर बोला, “नहीं । तो क्या हुआ, मैं इसी विद्यालय में हूँ जब मुझसे मिलना हो या कुछ भी समस्या हो मेरे पास आ सकते हो। दोनों आश्वस्त हो कर कक्षा में वापस चले गए ।मैं पूरे सत्र का अवलोकन करने लगी जब बच्चे मेरे बोलने के, पढ़ाने के ढंग और मेरे पहनावे को भी बहुत ध्यान से देखते थे,

Reflection -2 War versus Peace

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            " निराशावादी को हर अवसर में कठिनाई  दिखाई देती है।                       आशावादी हर कठिनाई  में अवसर देखता है। " मेरा सोचना है कि जब कोई व्यक्ति नई संस्था में जाता है तो उसके मन में थोड़ा भय होता है कि मैं यहाँ के लिए उपयुक्त हूँ या नहीं, या मुझे स्वीकार किया जाएगा कि नहीं और यदि ऐसे में कोई अनुपयुक्त स्थिति उत्पन्न हो जाए तो विश्वास भी थोड़ा हिल जाता है। कुछ ऐसा ही अनुभव मेरे साथ हुआ। मैं जिस विद्यालय में आई थी वहाँ काम करने की कभी कल्पना भी नहीं की थी क्योंकि मैं स्वयं को उस काबिल नहीं समझती थी। परंतु कुछ ऐसी परिस्थितियाँ आईं कि मैं वहाँ तक पहुंच गई। हर तरह के काम करने की चाह मुझे सकारात्मक सोच की तरफ ले जाती कि चलो कुछ तो नया अनुभव होगा और मैंने  स्वयं को सिद्ध करने का पूरा प्रयास किया। मैं भाग्यशाली थी कि मेरे प्रयासों का सकारात्मक प्रभाव विद्यालय प्रबंधन पर पड़ा और मैं वहाँ एक अध्यापिका के पद पर नियुक्त हुई। स्वाभाविक रूप से ज्यादातर मनुष्यों के अंदर प्रतिस्पर्धा का भाव रहता है, विकास के लिए आवश्यक भी है परंतु यह भी सच है कि प्रतिस्पर्धा व्यक्तिगत रूप से ज्या

Why Relationship building matters ? (in the school context) SHALINI TIWARI

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                                                                                     In my opinion, building relationships is a foundation of any school which first of all influences the environment of the school where a student  is the center point of the school. If he/she feels valued and connected to everyone in the school then he/she develops in every area. The child gets wings and this is possible only when a teacher connects with him/her emotionally, personally understands his needs, removes his/her doubts or understands his /her inclination and helps him/her in that direction. Then the child develops self-confidence, accepts challenges and achieves academic success. Often children who are introverts are not able to express their needs, due to which many times they are not able to prove themselves even after having the ability. In such situations, the teacher should  not be judgemental.He/she has to help that child. There is a need to further strengthen their relationship. The ro

What School makes us

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 School is a place where we try to achieve our goals with proper education and moral values and in this context teachers are our guides. But the achievement of a teacher and student can be achieved only when there is equal participation of both, that is, along with the student, the teacher should also be capable of adjusting in every upcoming environment. A school is where every student's ideas matter,and are encouraged to explore for themselves, and engage with teachers . There, the student's self-confidence not only increases but also there is development in his/her field. It is often heard that many rules are made in school, but remember that these rules do not bind children but give them the right direction to go towards their goals.