Love Learning vs Hate Learning

                                    Love Learning Vs Hate Learning

    


मैंने कक्षा में प्रवेश किया तो बच्चों ने उत्साह के साथ अभिवादन किया और पूछा, मैंम, आज के नए शब्द के लिए कोई संकेत दीजिए। मैं हतप्रभ रह गई कि मेरे इस तरह के प्रयोग करने पर बच्चे इतने  प्रभावित हो जाएँगे। मैंने पुनः नए शब्द के आधार पर एक सामान्य ज्ञान का प्रश्न बनाया जिसके तरह-तरह के उत्तर छात्र अपनी-अपनी सोच के आधार पर बता रहे थे। यह, वह  समय था जब नए सत्र में मैंने कक्षा की शुरुआत की थी और आज इस सत्र का आखिरी दिन था, मैंने अपनी कक्षा की अवधि पूर्ण की और बाहर निकल आई तभी पीछे से दो बच्चों ने आवाज लगाई, मैंने पीछे मुड़कर देखा और पूछा, “क्या बात है ? उनमें से एक रुँआसा होते हुए पूछा -“मैंम, क्या आप अगली कक्षा में नहीं पढ़ाएँगी¿ मैंने मुस्कुरा कर बोला, “नहीं । तो क्या हुआ, मैं इसी विद्यालय में हूँ जब मुझसे मिलना हो या कुछ भी समस्या हो मेरे पास आ सकते हो। दोनों आश्वस्त हो कर कक्षा में वापस चले गए ।मैं पूरे सत्र का अवलोकन करने लगी जब बच्चे मेरे बोलने के, पढ़ाने के ढंग और मेरे पहनावे को भी बहुत ध्यान से देखते थे, यहाँ तक कि वह कई बार अपनी पसंद रखते जैसे मैंम आप सूट नहीं साड़ी पहना कीजिए वगैरह-वगैरह। अब मैं सोचने पर मजबूर थी कि वास्तव में जब एक शिक्षक स्वयं को व्यवस्थित ना रखे, विषय को रुचिकर ना बनाएँ एवं उनके संशय को दूर करने की क्षमता ना हो तो कैसे छात्रों से आपसी जुड़ाव होगा ¿ कैसे एक शिक्षक की गरिमामयी व्यक्तित्व का निर्माण होगा¿ विद्यालय में सबसे अधिक एक शिक्षक और छात्र के बीच का संबंध ही महत्वपूर्ण होता है और उसे सुदृढ़ करने के लिए मेरे विचार से कुछ बिंदुओं पर ध्यान देना अनिवार्य है जो अधिगम को रोचक और प्रभावी बनाएँ और बच्चे भावनात्मक रूप से हमसे जुड़ सके |

*शारीरिक भाषा - हमारे शरीर का हाव-भाव हमारी सोच को दर्शाता है। हमारे चेहरे की मुद्रा या बोल चाल का ढंग यह बता देता है कि हम सामने वाले से बात करते समय उत्साहित है या नीरसता उत्पन्न हो रही है ।जहां तक बच्चों की बात है, बच्चे अपनी उपस्थिति का आभास चाहते हैं और  ऐसे में शिक्षक की एक दृष्टि भी, बच्चे का ध्यान आकर्षित करने के लिए पर्याप्त होती है। यदि बच्चा किसी प्रकरण पर अपने विचार व्यक्त कर रहा है और शिक्षक मुस्कुराकर उसके विचारों का स्वागत कर रहे हैँ  तो बच्चे का आत्मविश्वास बढ़ता है और अपनी बातों को नि:संकोच रखता है।

*पारस्परिक संबंध को बढ़ावा- शिक्षक का अध्यापन तभी सफल होता है जब वह आश्वस्त हो कि सभी छात्र उसकी शिक्षण अवधि में पूरी तरह शामिल है इसके लिए शिक्षक को सर्वप्रथम छात्रों के साथ ऐसा व्यवहार रखना चाहिए कि वह खुलकर अपने विचारों को रख सके, कोई भी संशय हो तो व्यक्त कर सके, उसके लिए शिक्षक में बच्चों के मनोभाव को भी पढ़ने का कौशल होना चाहिए क्योंकि सभी बच्चे बहिर्मुखी नहीं होते ।

*विषय को रुचिकर बनाना- किसी भी विषय को पढ़ाने के लिए शिक्षण की हर विधि का प्रयोग करना चाहिए जैसे खेल द्वारा, गतिविधि द्वारा, कला द्वारा या गीत संगीत द्वारा क्योंकि प्रत्येक बच्चे की अधिगम क्षमता अलग-अलग होती है। कुछ बच्चे समूह में जल्दी सीखते हैं ऐसे में सामूहिक क्रियाकलाप प्रभावकारी होता है।

*नई तकनीकी का प्रयोग- परिवर्तन संसार का नियम है और यह स्वीकार्य होना चाहिए। कई बार शिक्षा तकनीकी में भी परिवर्तन होते रहते हैं और एक शिक्षक को परिवर्तन के मूलभूत जानकारी को क्रियान्वयन में लाना चाहिए। शिक्षा में पारंपरिक और आधुनिक तकनीकी दोनों की भूमिका अनिवार्य है।

Shalini Tiwari

Sunbeam school Indiranagar

 

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