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Showing posts from February, 2025

Affection vs Rejection

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  Affection vs Rejection कई बार शिक्षक बहुत जल्दी किसी बच्चे के बारे में धारणा बना लेते हैं कि यह तो ऐसा ही है क्योंकि वे केवल बच्चों की क्रियाएँ और उसके व्यवहार के आधार पर आलोचना करना शुरू कर देते हैं और उसकी अवहेलना करने लगते हैं किंतु एक शिक्षक के रूप में सर्वप्रथम हमें उसके उस व्यवहार के कारण को जानना चाहिए। उसके लिए बच्चे से वार्तालाप करना चाहिए जैसे परिवार के सदस्यों के बारे में और उसके दिनचर्या के बारे में इत्यादि । हमें कभी भी बच्चों से इस तरह के प्रश्न नहीं करने चाहिए कि तुम्हारे परिवार में कौन-कौन है उसके स्थान पर आप यह बात करें कि अपने परिवार के बारे में कुछ बताओ जिससे वार्तालाप को विस्तार मिल सके किन्तु यह तभी सार्थक होता है जब हम बिना कोई धारणा बनाए उसकी बात सुने। जब हम इस तरीके से बच्चों में रोचकता दिखाते हैं तो धीरे-धीरे बच्चा भी अपने विचारों को व्यक्त करने लगता है। फिर, हम उससे उसकी की गई क्रियाओं पर चर्चा कर सकते हैं और उसे सही गलत में फर्क करना सीखा सकते हैं । किसी भी बच्चे को मार्गदर्शन देने के लिए सबसे पहले शिक्षक में सहानुभूति की अपेक्षा समानुभूति ...

To Copy Vs Not to Copy

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 "असफलता के बाद किया गया पुनः प्रयास और भी अधिक रचनात्मक होता है।" जीवन में सफलता की कसौटी स्वयं के ज्ञान का आकलन करना है, और इसका अनुभव जीवन में परिपक्वता लाता है। अक्सर विद्यार्थी जीवन में सफलता का मतलब परिणाम पत्र (Result Sheet) में प्राप्त अंकों को मान लिया जाता है, जबकि वास्तव में उसका जीवन में कोई खास उपयोग नहीं होता।अच्छे अंकों से सफलता को मापने का विद्यार्थी के व्यावहारिक जीवन पर उचित प्रभाव नहीं पड़ता। माता-पिता के दबाव में विद्यार्थी अच्छे अंक प्राप्त करने का प्रयास करते हैं, जिसके कारण कई बार वे परीक्षा में दूसरों की नकल करना, हाथ पर उत्तर लिखना, या चिट ले जाना आदि गलत कदम उठा लेते हैं। जब ऐसी हरकतें शिक्षक या अन्य विद्यार्थियों के संज्ञान में आती हैं, तो बच्चे को शर्मिंदा होना पड़ता है और ये सभी हरकतें अनजाने में ही हो जाती हैं, क्योंकि यहांँ भी उसका ध्यान अच्छे अंक प्राप्त करने पर होता है।  कई बार हमने बच्चों के बारे में सुना है कि वे ध्यान केंद्रित नहीं कर पाते, पढ़ाई में कमजोर होते हैं, जबकि वही बच्चा नकल करते समय इस बात का ध्यान रखता है कि मुझे अच्छे अंक लाने ...

Reflection -2 War versus Peace

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            " निराशावादी को हर अवसर में कठिनाई  दिखाई देती है।                       आशावादी हर कठिनाई  में अवसर देखता है। " मेरा सोचना है कि जब कोई व्यक्ति नई संस्था में जाता है तो उसके मन में थोड़ा भय होता है कि मैं यहाँ के लिए उपयुक्त हूँ या नहीं, या मुझे स्वीकार किया जाएगा कि नहीं और यदि ऐसे में कोई अनुपयुक्त स्थिति उत्पन्न हो जाए तो विश्वास भी थोड़ा हिल जाता है। कुछ ऐसा ही अनुभव मेरे साथ हुआ। मैं जिस विद्यालय में आई थी वहाँ काम करने की कभी कल्पना भी नहीं की थी क्योंकि मैं स्वयं को उस काबिल नहीं समझती थी। परंतु कुछ ऐसी परिस्थितियाँ आईं कि मैं वहाँ तक पहुंच गई। हर तरह के काम करने की चाह मुझे सकारात्मक सोच की तरफ ले जाती कि चलो कुछ तो नया अनुभव होगा और मैंने  स्वयं को सिद्ध करने का पूरा प्रयास किया। मैं भाग्यशाली थी कि मेरे प्रयासों का सकारात्मक प्रभाव विद्यालय प्रबंधन पर पड़ा और मैं वहाँ एक अध्यापिका के पद पर नियुक्त हुई। स्वाभाविक रूप से ज्यादातर मनुष्यों के अंदर प्रतिस्पर्धा का भाव र...

What School makes us

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 School is a place where we try to achieve our goals with proper education and moral values and in this context teachers are our guides. But the achievement of a teacher and student can be achieved only when there is equal participation of both, that is, along with the student, the teacher should also be capable of adjusting in every upcoming environment. A school is where every student's ideas matter,and are encouraged to explore for themselves, and engage with teachers . There, the student's self-confidence not only increases but also there is development in his/her field. It is often heard that many rules are made in school, but remember that these rules do not bind children but give them the right direction to go towards their goals.