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To Copy Vs Not to Copy

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 "असफलता के बाद किया गया पुनः प्रयास और भी अधिक रचनात्मक होता है।"जीवन में सफलता की कसौटी स्वयं के ज्ञान का आकलन करना है, और इसका अनुभव जीवन में परिपक्वता लाता है। अक्सर विद्यार्थी जीवन में सफलता का मतलब परिणाम पत्र (Result Sheet) में प्राप्त अंकों को मान लिया जाता है, जबकि वास्तविकता में उसका जीवन में कोई खास उपयोग नहीं होता।अच्छे अंकों से सफलता को मापने का विद्यार्थी के व्यावहारिक जीवन पर उचित प्रभाव नहीं पड़ता। माता-पिता के दबाव में विद्यार्थी अच्छे अंक प्राप्त करने का प्रयास करते हैं, जिसके कारण कई बार वे परीक्षा में दूसरों की नकल करना, हाथ पर उत्तर लिखना, या चिट ले जाना आदि गलत कदम उठा लेते हैं। जब ऐसी हरकतें शिक्षक या अन्य विद्यार्थियों के संज्ञान में आती हैं, तो बच्चे को शर्मिंदा होना पड़ता है और ये सभी हरकतें अनजाने में ही हो जाती हैं, क्योंकि यहां भी उसका ध्यान अच्छे अंक प्राप्त करने पर होता है।  कई बार हमने बच्चों के बारे में सुना है कि वे ध्यान केंद्रित नहीं कर पाते, पढ़ाई में कमजोर होते हैं, जबकि वही बच्चा नकल करते समय इस बात का ध्यान रखता है कि मुझे अच्छे अंक लान

Right vs Wrong

Right vs wrong  किशोरावस्था एक ऐसी अवस्था है जिसमें बच्चों में बहुत सारे बदलाव आते हैं शारीरिक, मानसिक एवं सामाजिक बदलाव, जिसका प्रभाव उनके व्यवहार पर पड़ता है। उनके अंदर जोश उत्साह के साथ कई बार उदासीनता भी आ जाती है जिसे हम अभिभावक नहीं समझ पाते और बच्चों से कह देते हैं कि तुम्हारी संगत ठीक नहीं जबकि वास्तव में, बच्चे असमंजस में रहते हैं कि क्या सही है और क्या गलत ? उसके लिए भी कहीं-न-कहीं हम अभिभावक ही जिम्मेदार होते हैं क्योंकि कभी हम उन्हें वयस्कों की तरह बर्ताव करने को कहते और कभी उन्हें बच्चों में गिनती करते हैं | कई बार इस उम्र में बच्चे अर्थपूर्ण बात नहीं करते हैं इसका कारण शारीरिक विकास, व्यवहारिक ज्ञान एवं दिमागी विकास एक साथ जुड़ ना पाना हैं क्योंकि मस्तिष्क का एक भाग अभी भी विकसित हो रहा होता है इसलिए किशोरावस्था में बच्चे इतने दूरदर्शी नहीं होते हैं , वे तो बस प्रयोग करते रहते हैं जिससे कई बार वे मुसीबत में भी फँस जाते हैं ऐसी स्थिति में इस उम्र के उतार-चढ़ाव को अभिभावक एवं अध्यापकों को समझना होगा। जिस प्रकार अपने बच्चों के व्यवहार में जरा भी परिवर्तन दिखाई देने पर हमारे

Affection vs Rejection

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  Affection vs Rejection कई बार शिक्षक बहुत जल्दी किसी बच्चे के बारे में धारणा बना लेते हैं कि यह तो ऐसा ही है क्योंकि वे केवल बच्चों की क्रियाएँ और उसके व्यवहार के आधार पर आलोचना करना शुरू कर देते हैं और उसकी अवहेलना करने लगते हैं किंतु एक शिक्षक के रूप में सर्वप्रथम हमें उसके उस व्यवहार के कारण को जानना चाहिए। उसके लिए बच्चे से वार्तालाप करना चाहिए जैसे परिवार के सदस्यों के बारे में और उसके दिनचर्या के बारे में इत्यादि । हमें कभी भी बच्चों से इस तरह के प्रश्न नहीं करने चाहिए कि तुम्हारे परिवार में कौन-कौन है उसके स्थान पर आप यह बात करें कि अपने परिवार के बारे में कुछ बताओ जिससे वार्तालाप को विस्तार मिल सके किन्तु यह तभी सार्थक होता है जब हम बिना कोई धारणा बनाए उसकी बात सुने। जब हम इस तरीके से बच्चों में रोचकता दिखाते हैं तो धीरे-धीरे बच्चा भी अपने विचारों को व्यक्त करने लगता है। फिर, हम उससे उसकी की गई क्रियाओं पर चर्चा कर सकते हैं और उसे सही गलत में फर्क करना सीखा सकते हैं । किसी भी बच्चे को मार्गदर्शन देने के लिए सबसे पहले शिक्षक में सहानुभूति की अपेक्षा समानुभूति की भावना होनी

Love Learning vs Hate Learning

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                                     Love Learning Vs  Hate Learning       मैंने कक्षा में प्रवेश किया तो बच्चों ने उत्साह के साथ अभिवादन किया और पूछा, मैंम, आज के नए शब्द के लिए कोई संकेत दीजिए। मैं हतप्रभ रह गई कि मेरे इस तरह के प्रयोग करने पर बच्चे इतने   प्रभावित हो जाएँगे। मैंने पुनः नए शब्द के आधार पर एक सामान्य ज्ञान का प्रश्न बनाया जिसके तरह-तरह के उत्तर छात्र अपनी-अपनी सोच के आधार पर बता रहे थे। यह, वह   समय था जब नए सत्र में मैंने कक्षा की शुरुआत की थी और आज इस सत्र का आखिरी दिन था, मैंने अपनी कक्षा की अवधि पूर्ण की और बाहर निकल आई तभी पीछे से दो बच्चों ने आवाज लगाई, मैंने पीछे मुड़कर देखा और पूछा, “क्या बात है ? उनमें से एक रुँआसा होते हुए पूछा -“मैंम, क्या आप अगली कक्षा में नहीं पढ़ाएँगी¿ मैंने मुस्कुरा कर बोला, “नहीं । तो क्या हुआ, मैं इसी विद्यालय में हूँ जब मुझसे मिलना हो या कुछ भी समस्या हो मेरे पास आ सकते हो। दोनों आश्वस्त हो कर कक्षा में वापस चले गए ।मैं पूरे सत्र का अवलोकन करने लगी जब बच्चे मेरे बोलने के, पढ़ाने के ढंग और मेरे पहनावे को भी बहुत ध्यान से देखते थे,

Reflection -2 War versus Peace

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            " निराशावादी को हर अवसर में कठिनाई  दिखाई देती है।                       आशावादी हर कठिनाई  में अवसर देखता है। " मेरा सोचना है कि जब कोई व्यक्ति नई संस्था में जाता है तो उसके मन में थोड़ा भय होता है कि मैं यहाँ के लिए उपयुक्त हूँ या नहीं, या मुझे स्वीकार किया जाएगा कि नहीं और यदि ऐसे में कोई अनुपयुक्त स्थिति उत्पन्न हो जाए तो विश्वास भी थोड़ा हिल जाता है। कुछ ऐसा ही अनुभव मेरे साथ हुआ। मैं जिस विद्यालय में आई थी वहाँ काम करने की कभी कल्पना भी नहीं की थी क्योंकि मैं स्वयं को उस काबिल नहीं समझती थी। परंतु कुछ ऐसी परिस्थितियाँ आईं कि मैं वहाँ तक पहुंच गई। हर तरह के काम करने की चाह मुझे सकारात्मक सोच की तरफ ले जाती कि चलो कुछ तो नया अनुभव होगा और मैंने  स्वयं को सिद्ध करने का पूरा प्रयास किया। मैं भाग्यशाली थी कि मेरे प्रयासों का सकारात्मक प्रभाव विद्यालय प्रबंधन पर पड़ा और मैं वहाँ एक अध्यापिका के पद पर नियुक्त हुई। स्वाभाविक रूप से ज्यादातर मनुष्यों के अंदर प्रतिस्पर्धा का भाव रहता है, विकास के लिए आवश्यक भी है परंतु यह भी सच है कि प्रतिस्पर्धा व्यक्तिगत रूप से ज्या

Why Relationship building matters ? (in the school context) SHALINI TIWARI

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                                                                                     In my opinion, building relationships is a foundation of any school which first of all influences the environment of the school where a student  is the center point of the school. If he/she feels valued and connected to everyone in the school then he/she develops in every area. The child gets wings and this is possible only when a teacher connects with him/her emotionally, personally understands his needs, removes his/her doubts or understands his /her inclination and helps him/her in that direction. Then the child develops self-confidence, accepts challenges and achieves academic success. Often children who are introverts are not able to express their needs, due to which many times they are not able to prove themselves even after having the ability. In such situations, the teacher should  not be judgemental.He/she has to help that child. There is a need to further strengthen their relationship. The ro
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                            Like Vs Unlike प्रकृति ने सभी को स्वयं में विविधता पूर्ण बनाया है , सबकी अपनी पसंद और नापसंद होती है जिसमें कुछ पसंद तो आपकी व्यक्तिगत होती है और कुछ हम दूसरों के दबाव में आकर पसंद करने लगते हैं तो पसंद और नापसंद पर हम कुछ बिंदुओं द्वारा चर्चा करने का प्रयास करते हैं - चुनाव (Like) को महत्व देना हमें अपनी पसंद के साथ दूसरों की पसंद को भी महत्व देना चाहिए | जीवन में हमें क्या पसंद है यह हमारी रुचि और नजरिया तय करता है और आवश्यक नहीं है कि जो हमारी पसंद हो, हमारा नजरिया हो वह सभी का हो | समय के साथ अब हर व्यक्ति की पसंद को महत्व दिया जाने लगा है पहले जो अभिभावक ने कह दिया वही हमारी पसंद बन जाती थी | यदि वह हमारे अनुकूल है तो हम मन से स्वीकार कर लेते थे परंतु प्रतिकूल होने पर पसंद का स्थान आज्ञा ले लेता था | जैसे-जैसे समय बदला , सोच बदलती गई और सबकी पसंद को प्राथमिकता दी जाने लगी। किसी भी परिवार संस्था या समुदाय में जब तक हम दूसरों के पसंद को महत्व नहीं देते हैं वहां सदैव विचारों में मतभेद पनपते रहते हैं आत्म निर्णय की क्षमता में विस्तार कई ऐ