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Heart Vs Mind

  https://creators.spotify.com/pod/show/sunbeam-school-indiranagar/episodes/Heart-vs--Mind-A-Teachers-Lens-e2s9iht Topic- Heart Vs Mind  Parenting is such a challenge where parents have to play the role of a facilitator more than a leader. Parents behave with children on the basis of their experience and while sharing their experiences, explain to them that we have also faced such a situation, so you should do this or that, but we parents make this mistake because the time and the system of society keep changing in which the circumstances keep changing in every generation. If something does not change then it is 'emotions' which are different at every age. Adolescence is such a stage of age in which the confusion of emotions is in an intense state, for example, competition with friends, attraction, awareness about one's looks and style and considering friendship as love etc. In such situations, we teachers and parents should understand the mental state of the children and t...

Fear Vs Courage

https://youtu.be/YeOW7y7HXFA?feature=shared   Fear Vs Courage  It was time for the prayer meeting. Riya, Kushagra and Samarth were all going to speak on their topics. Kushagra and Riya were very excited about their topic but Samarth was a little scared and worried. He would read his topic again and again and then start getting a little nervous. Everyone spoke about their topics one by one and now it was Samarth's turn. As soon as he held the mike, he became completely blank as if he did not know what to say. Seeing this, his class teacher came close to him and explained to him that son, you start your topic with a greeting, you can do it and I am with you, an effort is necessary to learn dear, no one is perfect in one go. But for perfection one has to start and try again and again, so you take a deep breath and speak about your topics. Samarth gathered some courage and started speaking. Whenever he forgot, his class teacher tried to remind him. In this way Samarth completed hi...

To Copy Vs Not to Copy

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 "असफलता के बाद किया गया पुनः प्रयास और भी अधिक रचनात्मक होता है।"जीवन में सफलता की कसौटी स्वयं के ज्ञान का आकलन करना है, और इसका अनुभव जीवन में परिपक्वता लाता है। अक्सर विद्यार्थी जीवन में सफलता का मतलब परिणाम पत्र (Result Sheet) में प्राप्त अंकों को मान लिया जाता है, जबकि वास्तविकता में उसका जीवन में कोई खास उपयोग नहीं होता।अच्छे अंकों से सफलता को मापने का विद्यार्थी के व्यावहारिक जीवन पर उचित प्रभाव नहीं पड़ता। माता-पिता के दबाव में विद्यार्थी अच्छे अंक प्राप्त करने का प्रयास करते हैं, जिसके कारण कई बार वे परीक्षा में दूसरों की नकल करना, हाथ पर उत्तर लिखना, या चिट ले जाना आदि गलत कदम उठा लेते हैं। जब ऐसी हरकतें शिक्षक या अन्य विद्यार्थियों के संज्ञान में आती हैं, तो बच्चे को शर्मिंदा होना पड़ता है और ये सभी हरकतें अनजाने में ही हो जाती हैं, क्योंकि यहां भी उसका ध्यान अच्छे अंक प्राप्त करने पर होता है।  कई बार हमने बच्चों के बारे में सुना है कि वे ध्यान केंद्रित नहीं कर पाते, पढ़ाई में कमजोर होते हैं, जबकि वही बच्चा नकल करते समय इस बात का ध्यान रखता है कि मुझे अच्छे अंक लान...

Right vs Wrong

Right vs wrong  किशोरावस्था एक ऐसी अवस्था है जिसमें बच्चों में बहुत सारे बदलाव आते हैं शारीरिक, मानसिक एवं सामाजिक बदलाव, जिसका प्रभाव उनके व्यवहार पर पड़ता है। उनके अंदर जोश उत्साह के साथ कई बार उदासीनता भी आ जाती है जिसे हम अभिभावक नहीं समझ पाते और बच्चों से कह देते हैं कि तुम्हारी संगत ठीक नहीं जबकि वास्तव में, बच्चे असमंजस में रहते हैं कि क्या सही है और क्या गलत ? उसके लिए भी कहीं-न-कहीं हम अभिभावक ही जिम्मेदार होते हैं क्योंकि कभी हम उन्हें वयस्कों की तरह बर्ताव करने को कहते और कभी उन्हें बच्चों में गिनती करते हैं | कई बार इस उम्र में बच्चे अर्थपूर्ण बात नहीं करते हैं इसका कारण शारीरिक विकास, व्यवहारिक ज्ञान एवं दिमागी विकास एक साथ जुड़ ना पाना हैं क्योंकि मस्तिष्क का एक भाग अभी भी विकसित हो रहा होता है इसलिए किशोरावस्था में बच्चे इतने दूरदर्शी नहीं होते हैं , वे तो बस प्रयोग करते रहते हैं जिससे कई बार वे मुसीबत में भी फँस जाते हैं ऐसी स्थिति में इस उम्र के उतार-चढ़ाव को अभिभावक एवं अध्यापकों को समझना होगा। जिस प्रकार अपने बच्चों के व्यवहार में जरा भी परिवर्तन दिखाई देने पर हम...

Affection vs Rejection

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  Affection vs Rejection कई बार शिक्षक बहुत जल्दी किसी बच्चे के बारे में धारणा बना लेते हैं कि यह तो ऐसा ही है क्योंकि वे केवल बच्चों की क्रियाएँ और उसके व्यवहार के आधार पर आलोचना करना शुरू कर देते हैं और उसकी अवहेलना करने लगते हैं किंतु एक शिक्षक के रूप में सर्वप्रथम हमें उसके उस व्यवहार के कारण को जानना चाहिए। उसके लिए बच्चे से वार्तालाप करना चाहिए जैसे परिवार के सदस्यों के बारे में और उसके दिनचर्या के बारे में इत्यादि । हमें कभी भी बच्चों से इस तरह के प्रश्न नहीं करने चाहिए कि तुम्हारे परिवार में कौन-कौन है उसके स्थान पर आप यह बात करें कि अपने परिवार के बारे में कुछ बताओ जिससे वार्तालाप को विस्तार मिल सके किन्तु यह तभी सार्थक होता है जब हम बिना कोई धारणा बनाए उसकी बात सुने। जब हम इस तरीके से बच्चों में रोचकता दिखाते हैं तो धीरे-धीरे बच्चा भी अपने विचारों को व्यक्त करने लगता है। फिर, हम उससे उसकी की गई क्रियाओं पर चर्चा कर सकते हैं और उसे सही गलत में फर्क करना सीखा सकते हैं । किसी भी बच्चे को मार्गदर्शन देने के लिए सबसे पहले शिक्षक में सहानुभूति की अपेक्षा समानुभूति ...

Love Learning vs Hate Learning

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                                     Love Learning Vs  Hate Learning       मैंने कक्षा में प्रवेश किया तो बच्चों ने उत्साह के साथ अभिवादन किया और पूछा, मैंम, आज के नए शब्द के लिए कोई संकेत दीजिए। मैं हतप्रभ रह गई कि मेरे इस तरह के प्रयोग करने पर बच्चे इतने   प्रभावित हो जाएँगे। मैंने पुनः नए शब्द के आधार पर एक सामान्य ज्ञान का प्रश्न बनाया जिसके तरह-तरह के उत्तर छात्र अपनी-अपनी सोच के आधार पर बता रहे थे। यह, वह   समय था जब नए सत्र में मैंने कक्षा की शुरुआत की थी और आज इस सत्र का आखिरी दिन था, मैंने अपनी कक्षा की अवधि पूर्ण की और बाहर निकल आई तभी पीछे से दो बच्चों ने आवाज लगाई, मैंने पीछे मुड़कर देखा और पूछा, “क्या बात है ? उनमें से एक रुँआसा होते हुए पूछा -“मैंम, क्या आप अगली कक्षा में नहीं पढ़ाएँगी¿ मैंने मुस्कुरा कर बोला, “नहीं । तो क्या हुआ, मैं इसी विद्यालय में हूँ जब मुझसे मिलना हो या कुछ भी समस्या हो मेरे पास आ सकते हो। दोनों आश्वस्त हो कर कक्षा में वापस...

Reflection -2 War versus Peace

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            " निराशावादी को हर अवसर में कठिनाई  दिखाई देती है।                       आशावादी हर कठिनाई  में अवसर देखता है। " मेरा सोचना है कि जब कोई व्यक्ति नई संस्था में जाता है तो उसके मन में थोड़ा भय होता है कि मैं यहाँ के लिए उपयुक्त हूँ या नहीं, या मुझे स्वीकार किया जाएगा कि नहीं और यदि ऐसे में कोई अनुपयुक्त स्थिति उत्पन्न हो जाए तो विश्वास भी थोड़ा हिल जाता है। कुछ ऐसा ही अनुभव मेरे साथ हुआ। मैं जिस विद्यालय में आई थी वहाँ काम करने की कभी कल्पना भी नहीं की थी क्योंकि मैं स्वयं को उस काबिल नहीं समझती थी। परंतु कुछ ऐसी परिस्थितियाँ आईं कि मैं वहाँ तक पहुंच गई। हर तरह के काम करने की चाह मुझे सकारात्मक सोच की तरफ ले जाती कि चलो कुछ तो नया अनुभव होगा और मैंने  स्वयं को सिद्ध करने का पूरा प्रयास किया। मैं भाग्यशाली थी कि मेरे प्रयासों का सकारात्मक प्रभाव विद्यालय प्रबंधन पर पड़ा और मैं वहाँ एक अध्यापिका के पद पर नियुक्त हुई। स्वाभाविक रूप से ज्यादातर मनुष्यों के अंदर प्रतिस्पर्धा का भाव र...